कुम्हार

मैं छत पर लेटा खुले आसमान में क्या तक रहा था?  गर्मी की रातों में खाट पर लेटे हुए चाँद-तारों को निहारने में कैसा अनिर्वचनीय सुख है। विशाल आसमान का प्रसार हमारे मन को कितना फैलाव देता है।…

वह कौन है ?

तरुणियों की आँखों में तैरने वाले लाल डोरों में छुपा हुआ वह कौन है ? वह कौन है जो रूपसियों के रूप की आभा है ? वह कौन है जो कामिनियों की मछलियों जैसी आँखों, तिरछी भौहों एवं…

यक्षप्रश्न

रात के सीने में कितने राज होते हैं?  रात सोने तक कैलाश ने किरण को नहीं बताया था कि अलसुबह क्या होने वाला है?  कुछ देर पहले उन्होंने तीन बजे का अलार्म भरा तो किरण को हैरानी अवश्य…

असली खुराक

‘अल्लाहो अकबर……..’  घर से कुछ दूर स्थित मस्जिद से आती मुल्ला की अजान सुनते ही मैंने बैठक में पड़ी आरामकुर्सी उठायी एवं बाहर बगीचे में रख दिया। कबीर ने भले अजान सुनकर कोफ्त निकाली हो कि खुदा क्या…

राजदर्प

सर्दी में गुनगुनी धूप का सेवन ब्रह्मानन्द से कम नहीं है।  सचिवालय में उद्योग विभाग के बाहर कुछ उद्योगपति गुनगुनी धूप का आनन्द ले रहे थे। इन उद्योगपतियों में श्री रामावतार अग्रवाल, श्री जैन, श्री धूत एवं श्री…

खड़ूस

   मि. मित्तल जैसा खड़ूस आपको ढूंढ़े नहीं मिलेगा ?         केक्टस एवं कोक्रोचों की तरह खड़ूस भी दुनियाँ में सर्वत्र मिल जाते हैं। इन्हें दीपक लेकर ढूंढने की जरूरत नहीं। इनकी मात्रा के अनुरूप इनके प्रकार भी कई तरह…

वृक्ष

क्षितिज के उस पार अंधकार हटने लगा था।  प्रभात का पट खोल प्रभाकर पूर्वी छोर से प्रगट हुए तो समस्त जगत ऊर्जा एवं उत्साह से भर गया। जड़-चेतन सभी क्रियाशील हो गये। सूर्य-भक्तों ने दोनों हाथ ऊपर कर…

नैहर

चढ़ते चैत्र की आज दूसरी रात थी।        क्षितिज के उस पार चन्द्रदेव अभी आधे ही उठे होंगे कि कुमुदिनियों ने झूम कर उनका स्वागत किया। चन्द्र दर्शन से उनका हर पत्ता ऐसे खिल उठा जैसे किसी कवि को…

श्राद्ध

पकवान भरी थाली कमला ने छत की मुंडेर पर रखकर उसी गीत के साथ कौओं का आह्वान किया जो कभी उसकी सास ‘सावित्री’ अपनी सास के श्राद्ध दिवस पर गाया करती थी। जग दिखावे के लिए क्या-क्या नहीं…

हवेलियाँ

विदेशी सैलानियों से भरी वातानुकूलित लक्ज़री बस ’सम’ गाँव की ओर भागी जा रही थी। ‘डेविड स्मिथ’ दूसरी कतार में दायें खिड़की के पास बैठा मीलों पसरे रेगिस्तान को निहार रहा था। चारों और मिट्टी का समुद्र फैला…

तृप्ति

आकाश का पूर्वी छोर प्रभात की नवरश्मियों से रंजित हो चुका था। कलियों ने सूर्यदेव के दर्शन हेतु घूंघट उठाए तो नवकिरणों का स्पर्श पाकर उनके चेहरे पर बिखरी बूंदें कुदरत के मोतियों की तरह चमक उठी। गर्मी…

कच्ची धूप

आज सुबह वह फिर मेरे साथ था। माॅर्निंग वाॅक के आनन्द से वह अनभिज्ञ नहीं था। कालीन की तरह बिछी नरम मुलायम घास पर नंगे पाँव चलना, चहकती चिड़ियों को देखना एवं खुशबू चुराती हवा के आनन्द को…