भाग (1) दोपहर का सूर्य तेजी से संध्यारानी की ओर क्यों भागता है? क्या वह भी बुजुर्गियत में आँख लड़ाने का शौकीन हो गया है? टैगोर पार्क में आज शाम यही चर्चा छिड़ी थी। आखिर देवड़ा साहब एवं…
चरैवेति चरैवेति
अब उसके पास आत्महत्या के अतिरिक्त विकल्प ही क्या था? ऐसे नीरस, निरानंद एवं निरर्थक जीवन से तो मौत भली ! चुपचाप दाँत भींचे वह नदी की ओर तेज गति से जा रहा था। भादो की आखिरी रात…
उसकी बीवी
हमारे पड़ौसी का मकान बनकर तैयार है हालांकि मैं एवं मेरा दिल जानता है इसके पूरा होते-होते हमने कितनी मुसीबतें झेली हैं। पिछले पूरे वर्ष कभी मिट्टी लेकर ट्रक आ रहे हैं तो कभी सड़क पर सीमेन्ट घुट…
अक्कड़-बक्कड़
जी हाँ, मैं तनाव में हूँ। अब आप यह न पूछे मैं तनाव में क्यों हूँ? दुनिया को दूसरों के दुःखों को जानने की बड़ी उत्सुकता होती है। खुद की निपटती नहीं, लेकिन दूसरों के जीवन में ताका-झाँकी…
निशिनाथ
मैं निशिनाथ हूँ। मेरा यही एक नाम नहीं है। मेरे प्रशंसकों ने मुझे अनेक नाम दिये चन्द्रमा, शशि, मयंक, रजनीपति, इन्दु, कलानिधि, राकेश, विधु, सोम, सुधाकर, हिमांशु, मून, लूनार एवं जाने क्या-क्या। अनन्त युगों से मैं रात्रि में…
उत्तर-काल
कैलाशनाथ, गोवर्धनदास एवं मदनलाल की दोस्ती सारे शहर में मशहूर थी। तीनों अब पके पान थे। तीनों की उम्र सत्तर पार थी। तीनों के व्यक्तित्व एवं स्वभाव में मूलभूत अन्तर होते हुए भी तीनों की मित्रता इससे अप्रभावित…
दृष्टिकोण
रूठे बच्चों के कपोलों की तरह बारिश के बाद खिड़की दरवाजे अक्सर फूल जाते हैं। छोटे-छोटे कामों के लिए सुथार को ढूँढ़ना भी टेढ़ी खीर है। इस बार बारिश इतनी पड़ी कि घर के सारे दरवाजे न सिर्फ…
गुमनाम उजाले
क्षितिज के उस पार संध्या की लालिमा फैलने लगी थी। उसके लज्जा आरक्त मुख को देखकर थके सूर्यदेव में एक नये उत्साह का संचार हुआ। रथ पर बैठे-बैठे वे अपनी प्रेयसी की नीयत जान गये। ललचायी आँखों से…
भटकते आकाश
आसमान के कान होते तो क्या वह धरती की व्यथा सुनता? अपनी भड़ास तो वह बादलों के मुँह से निकाल लेता है। सोनिया के बारे में इससे अधिक सुनना मेरे लिए कठिन था। यह बातें कोई और…
पीढ़ियाँ
न जाने बच्चे आजकल इतनी बहस क्यूँ करते हैं ? ऐसा सबके साथ हो तो मैं मन को मना भी लूँ। हम दुखियारे जीवन को उत्साह देते हैं पर ऐसा है कहाँ ? मैं रोज देखता हूँ मेरे…
दीक्षा
डूबते सूर्य का आखिरी बिम्ब अब ओझल हो चुका था। सांझ घर लौटते पक्षियों का शोर भी यकायक थमने लगा था। नववधू के लज्जाआरक्त मुख की तरह पश्चिमी छोर पर लालिमा अब भी शेष थी। रामसुख आज फिर…
वणिकपुत्रम्
सहस्रों वर्ष पुरानी कथा है। तब पृथ्वी को सुचारू रूप से चलाने के लिए परमात्मा ने ब्रह्मा को ऐसा प्राणी सृजन करने का निर्देश दिया जिसके उन्मुक्त हाथ पैर हों, अन्य जीवों से अच्छी बुद्धि हो, जिसमें विवेक…