क्षितिज के उस पार संध्या की लालिमा फैलने लगी थी। उसके लज्जा आरक्त मुख को देखकर थके सूर्यदेव में एक नये उत्साह का संचार हुआ। रथ पर बैठे-बैठे वे अपनी प्रेयसी की नीयत जान गये। ललचायी आँखों से…
भटकते आकाश
आसमान के कान होते तो क्या वह धरती की व्यथा सुनता? अपनी भड़ास तो वह बादलों के मुँह से निकाल लेता है। सोनिया के बारे में इससे अधिक सुनना मेरे लिए कठिन था। यह बातें कोई और…
पीढ़ियाँ
न जाने बच्चे आजकल इतनी बहस क्यूँ करते हैं ? ऐसा सबके साथ हो तो मैं मन को मना भी लूँ। हम दुखियारे जीवन को उत्साह देते हैं पर ऐसा है कहाँ ? मैं रोज देखता हूँ मेरे…
दीक्षा
डूबते सूर्य का आखिरी बिम्ब अब ओझल हो चुका था। सांझ घर लौटते पक्षियों का शोर भी यकायक थमने लगा था। नववधू के लज्जाआरक्त मुख की तरह पश्चिमी छोर पर लालिमा अब भी शेष थी। रामसुख आज फिर…
वणिकपुत्रम्
सहस्रों वर्ष पुरानी कथा है। तब पृथ्वी को सुचारू रूप से चलाने के लिए परमात्मा ने ब्रह्मा को ऐसा प्राणी सृजन करने का निर्देश दिया जिसके उन्मुक्त हाथ पैर हों, अन्य जीवों से अच्छी बुद्धि हो, जिसमें विवेक…
कुम्हार
मैं छत पर लेटा खुले आसमान में क्या तक रहा था? गर्मी की रातों में खाट पर लेटे हुए चाँद-तारों को निहारने में कैसा अनिर्वचनीय सुख है। विशाल आसमान का प्रसार हमारे मन को कितना फैलाव देता है।…
वह कौन है ?
तरुणियों की आँखों में तैरने वाले लाल डोरों में छुपा हुआ वह कौन है ? वह कौन है जो रूपसियों के रूप की आभा है ? वह कौन है जो कामिनियों की मछलियों जैसी आँखों, तिरछी भौहों एवं…
यक्षप्रश्न
रात के सीने में कितने राज होते हैं? रात सोने तक कैलाश ने किरण को नहीं बताया था कि अलसुबह क्या होने वाला है? कुछ देर पहले उन्होंने तीन बजे का अलार्म भरा तो किरण को हैरानी अवश्य…
असली खुराक
‘अल्लाहो अकबर……..’ घर से कुछ दूर स्थित मस्जिद से आती मुल्ला की अजान सुनते ही मैंने बैठक में पड़ी आरामकुर्सी उठायी एवं बाहर बगीचे में रख दिया। कबीर ने भले अजान सुनकर कोफ्त निकाली हो कि खुदा क्या…
राजदर्प
सर्दी में गुनगुनी धूप का सेवन ब्रह्मानन्द से कम नहीं है। सचिवालय में उद्योग विभाग के बाहर कुछ उद्योगपति गुनगुनी धूप का आनन्द ले रहे थे। इन उद्योगपतियों में श्री रामावतार अग्रवाल, श्री जैन, श्री धूत एवं श्री…
खड़ूस
मि. मित्तल जैसा खड़ूस आपको ढूंढ़े नहीं मिलेगा ? केक्टस एवं कोक्रोचों की तरह खड़ूस भी दुनियाँ में सर्वत्र मिल जाते हैं। इन्हें दीपक लेकर ढूंढने की जरूरत नहीं। इनकी मात्रा के अनुरूप इनके प्रकार भी कई तरह…
वृक्ष
क्षितिज के उस पार अंधकार हटने लगा था। प्रभात का पट खोल प्रभाकर पूर्वी छोर से प्रगट हुए तो समस्त जगत ऊर्जा एवं उत्साह से भर गया। जड़-चेतन सभी क्रियाशील हो गये। सूर्य-भक्तों ने दोनों हाथ ऊपर कर…