सत्यमेव जयते

साँझ कब की बीत चुकी थी। रात्रि की दुल्हन नवशृंगार कर अपने प्रियतम की प्रतीक्षा में आँखें बिछाये खड़ी थी। तारों एवं नक्षत्रों से घिरा चतुर्दशी का युवक चन्द्र आसमान में यूँ बढ़ रहा था मानो कोई दूल्हा बारातियों को साथ लिये दुल्हन के घर की ओर भागा जा रहा हो।

अक्षय की बारात दुल्हन के घर से मात्र कुछ कदम दूर थी। बैंड-बाजे का शोर अब पहले से तेज होने लगा था। बारात एवं बाराती दोनों का उत्साह देखते बनता था। दूल्हे के मित्र, रिश्तेदार सभी थिरकने लगे थे। लक्ष्य का दर्शन न सिर्फ मार्ग की सारी पीड़ा हर लेता है, हमारे उत्साह, आनन्द एवं हौसले को भी दूना कर देता है। मि. तनेजा इतनेे प्रफुल्लित पहले कभी नहीं दिखे। पुत्र का विवाह किस पिता को गर्व एवं आनन्द से नहीं भरता।

आज सुबह ही दुल्हन के पिता ने उन्हें तिलक की मोटी रकम सुपुर्द की थी। मि. तनेजा बेकार की बातों में सर नहीं खपाते थे। वे पूर्णतः व्यावहारिक थे एवं अंग्रेजी की इस उक्ति को उन्होंने हृदय में उतार लिया था कि ‘मनी मेक्स द मेअर गो’अर्थात् पैसे का काम पैसे से चलता है। संसार में धूलकणों की भाँति लोगों के स्वभाव भी असंख्य प्रकार के होते हैं। 

अक्षय उनके दो पुत्रों में छोटा था, बड़ा विजय भी अक्षय की तरह एम.डी. था। विजय की शादी उन्होंने ठाट-बाट से चार वर्ष पूर्व ही की थी। लड़की भी डाॅक्टर थी एवं लड़की के पिता शहर के प्रतिष्ठित उद्योगपति। और क्या चाहिए। कहीं भी सम्बन्ध करने के पूर्व तनेजा चाशनी के तीनों तार देख लेते थे। लड़की सुन्दर हो, पढ़ी-लिखी हो एवं धनी परिवार से हो। एक भी तार टूटता तो किनारा कर लेते। विजय की शादी में उन्हें प्रयास तो करने पड़े, पर अन्ततः मनवांछित घर मिल गया। उस दिन उनके आँखों की चमक देखने लायक थी।  अंतःकरण फूल की तरह खिल उठा था। गर्व से उन्होंने मिसेज तनेजा सेे कहा, ‘देखा! मैं काँटा डालता हूँ तो सोने की मछली फँसती है।’ मिसेज तनेजा व्यवहार कुशलता में उनसे दो कदम आगे थी, चहक कर बोली, ‘आपकी बात ही कुछ और है।’ 

मि. तनेजा जीवन बीमा निगम से दो वर्ष पूर्व रिटायर हुए थे। हर माह अच्छी पेंशन मिल जाती थी, मिसेज तनेजा भी सरकारी स्कूल में टीचर थी। दोनों धन को ऐसे सेते जैसे पक्षी अण्डों को। जैसे मछलियों के लिए जल जीवन होता है, धन उनका जीवन आधार था। दोनों ने सारी उम्र जोड़-तोड़ कर धन को दो दूनी चार करने का प्रयास किया पर उन्हें इच्छित सफलता नहीं मिली। पुत्र उनकी अभिलाषाओं के केन्द्रबिन्दु थे। तनेजा अच्छी तरह जानते थे कि इन हुण्डियों को भुनाकर ही वे आर्थिक समृद्धि का महल खड़ा कर सकते हैं। विजय की शादी में उनके विचार सार्थक भी हुए।

अक्षय के विवाह करवाने में मि. तनेजा को पापड़ बेलने पड़ गये। एक तो कद में वह माँ पर चला गया, मात्र पाँच फुट चार इंच था, दूसरे उसके मित्र लफाड़ी थे। जब-तब बीयर बार में बैठा शराब पीता रहता। समाज के सयानों से कौन-सी बात छिपी है। इन्हीं आदतों के चलते वह बदनाम हो गया। तनेजा को अपना स्वप्न महल बिखरता लगा। एक दिन जमकर लताड़ा, ‘एक तो तू टिंगू है, ऊपर से ये कारनामे, करेला नीम चढ़ा। यह मत सोच लेना कि मात्र डाॅक्टर बन जाने से अच्छी लड़की मिल जाएगी। अब सबके एक-दो बच्चे होते हैं एवं सभी सारे गुण देखते हैं।’ अक्षय ने इस झिड़की के बाद शराब छोड़ दी, पर अच्छे घर वाले अब भी ‘रेस्पॉन्ड’ नहीं कर रहे थे। कलंक काले तिल की तरह चमड़ी से चिपक जाता है।

मि. तनेजा ने प्रयास और बढ़ाये। मियाँ-बीबी बादलों में घौंसला बनाते रहते पर यहाँ मंसूबे खाक होते  नजर आ रहे थे। अखबारों में विज्ञापन दिये, कई रिश्तेदारों को कहा, पर यहाँ उनकी चाशनी के तार टूट गए। लड़का दिन-ब-दिन उम्र ले रहा था। उसके गुलाबी गाल अब पिचकने लगे थे। अंततः तनेजा ने हार-थक कर पास ही गाँव के एक पटवारी के यहाँ रिश्ता तय कर दिया। लड़की बी.ए. एवं रूपरंग में साधारण थी। तनेजा जानते थे यहाँ औपचारिकता भर दहेज आएगा पर तनेजा की तकदीर तो विधाता ने सोने की कलम से लिखी थी। आज सुबह पटवारी ने तिलक दिया तो तनेजा ठगे रह गए। कलेजा दूना हो गया। विजय की शादी में मिले तिलक से भी यह रकम अधिक थी। भाग्य का छींका टूटने पर बिल्ली की खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है। अब उन्हें पता चला पटवारी किस बला का नाम है। रिश्वतखोरी कितना ही घृणित कृत्य क्यों न हो, समाजवाद का पुरजोर पोषक एवं गरीबी-अमीरी की खाई पाटनेे वाला मजबूत सेतु भी है। जिस आर्थिक साम्यता को लाने के लिए बड़े-बड़े अर्थवेत्ता एवं राजनीतिज्ञ खप गए, रिश्वतखोरी ने चट से कर दिखाया। समाजशास्त्री एवं कानून चाहे जो कहे, रिश्वतखोरी ने कई गरीबों को अमीर बनाया है, अनेक फकीरों को ‘प्लेस आफ प्राइड’ दिया है अन्यथा पटवारी फटी शर्ट पहने साइकिल पर पैडल मारते नज़र आते थे। एक रिश्वतखोर पटवारी एक ईमानदार कलेक्टर पर भारी पड़ता है।

मि. तनेजा ने बारात चलने के पहले ही जेब में पचास हजार रुपये रख लिये थे। आज उनकी चिरसंचित तमन्नाओं एवं अरमानों को वो दिल खोलकर दिखाना चाहते थे। गाँठ से लाते तो कुछ तकलीफ होती पर यह रकम तो तिलक का अंशमात्र थी। सोचा आज जी भर कर खर्च करूंगा। जो मांगेगा उसे बधाई दूंगा, बच्चे डाँस करेंगे तो उन पर पाँच-पाँच सौ के नोट वारूंगा। यही सोचते पूरा रास्ता निकल गया, उन्होंने जेब को हवा नहीं लगने दी। वे बार-बार रुपये निकालते एवं अंदर रख लेेते। इसी कशमकश में किसी की नजर उन पर पड़ गई।

बारात दुल्हन के घर के ठीक सामने थी। सामने सुन्दर परिधानों में सजी स्त्रियाँ मंगल गीत गा रही थी। दूल्हे के श्वसुर एवं रिश्तेदार निरीह प्राणियों की तरह हाथ जोड़े खड़े थे। हेलोज़न लाइटों की रोशनी में वातावरण जगमगा रहा था। अक्षय के मित्र, रिश्तेदार सभी जोर-शोर से डांस में लगे थे। तनेजा के मुखमण्डल की प्रसन्नता देखते बनती थी। अपने मोटे, वायु भरे बेडौल शरीर के साथ वे डांस तो नहीं कर सकते थे पर उत्सव के नशे में उनकी आँखें नाच रही थीं।

अब विजय एवं उसकी पत्नी नृत्य कर रहे थे। दोनों को डांस करते देख तनेजा के मन-मयूर में हूक उठी। रुपये वारने का इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता था ? भावावेश में उन्होंने जेब में हाथ डाला तो ऊपर की सांस ऊपर एवं नीचे की नीचे रह गई। चेहरे का रंग उड़ गया। कोई उनकी जेब से रुपये खींच रहा था। क्षण भर के लिए उनकी आवाज़ बन्द हो गई, चेहरे पर खिलता बसन्त पतझड़ में तब्दीलहो गया। तनेजा के प्राण आठ  आँखों  से  धन की रक्षा करते थे। पत्ता खड़कते ही जैसे शिकारी सावधान हो जाता है, वे तुरन्त जागे, बिजली की फुर्ती से इधर-उधर देखा एवं जोर से चिल्लाये, ‘चोर! …. चोर! …. चोर !’ चोर भी बहत्तर घाट का पानी पिया हुआ था। उसने रुपये अपने साथी को पकड़ाये जो धावक की तरह पलक झपकते अदृश्य हो गया। वह खुद भी रफूचक्कर होने में था लेकिन दुर्भाग्य ! आज उसके पाँव में शनि आ गया। सामने से आते एक ट्रक ने उसका रास्ता रोक लिया एवं देखते ही देखते अक्षय के मित्रों ने उसे धर दबोचा। आनंद और उत्साह का सारा माहौल विस्मय एवं विषाद से भर गया। सभी लोगों ने अपनी-अपनी जेबें टटोली तो दो तीन और लोगों के पर्स गायब थे। अब तो अफरातफरी मच गई। रंग में भंग पड़ गया।

दूल्हे के मित्र चोर को पकड़कर पाण्डाल में ले आये। डांस वगैरह सब बंद हो गये। चोर बारातियों एवं घरातियों से घिरा था। सभी ने उसकी मजबूत किलेबंदी कर ली थी अन्यथा चोर का क्या भरोसा, निगाह चूके और फरार। बीयर पीये हुए दूल्हे के कुछ साथी आगे बढ़े एवं जूतम पैजार प्रारंभ कर दी गई। कोई थप्पड़ तो कोई जूतों-लातों से तो कोई घन की तरह घूँसे बरसाने लगा। चोर निढ़ाल होकर नीचे गिरा, पर तुरन्त सम्हल कर खड़ा हो गया। एक लम्बी सांस लेकर बोला, ‘जय माता दी !’ अब माता ही उसका अवलंब थी। अक्षय के मित्र हरीश ने उसकी काॅलर पकड़कर कहा, ‘बता! तेरा साथी कहाँ है ? या तो रुपये वापस करवा दे, नहीं तो खैर नहीं !’ इतना कहकर उसने एक थप्पड़ और लगाई। जवान का थप्पड़ था, चोर गिरते-गिरते बचा, फिर सम्हलकर बोला, ‘जय माता दी !’ इसी दरम्यान दूल्हे के चाचा गिरीशजी सबको एक तरफ कर वहाँ आये। उनका भी पर्स आज पार हो गया था। पर्स में रुपये तो अधिक नहीं थे पर देर रात जाने वाली ट्रेन के रिजर्वेशन टिकट भी साथ चले गए। कल उनके प्रमोशन का साक्षात्कार था अतः आज रात उनका जाना जरूरी था।

गिरीशजी दो पसली कमजोर दिल व्यक्ति थे। स्थानीय सरकारी स्कूल में हिन्दी के अध्यापक थे। रिश्तों में अक्सर उनकी बुज़दिली की चर्चा होेती। विजय के विवाह में चूहे से डरकर उन्होंने कमरा बंद कर लिया था। औरतों ने तब उनके खूब चटकारे लिये। जीवन में जब-जब उन्होंने साहसी होने का प्रयास किया दुर्गत करवायी। उनकी और मज़ाक बनी। यह कुण्ठा उन्हें खाये जाती थी। वीरता दिखाने एवं ताल ठोकने का इससे सुनहरा मौका क्या हो सकता था, भीड़ में अच्छे-अच्छों का पौरुष जाग जाता है। आज उन्होंने भी खुलकर हाथ बरसाये, ‘साले! अपने आपको समझता क्या है ? मैं तो खुद पुलिस हूँ। यहाँ डकैतों तक से उगलवा लेते हैं, तू किस खेत की मूली है !’ पुलिस के नाम से चोर की बाँछें खिल गई पर उसके शातिर दिमाग ने पल भर में जान लिया, यह फिसड्डी पुलिस में नहीं हो सकता। पुनः लंबी सांस भरकर बोला, ‘जय माता दी !’ वह मजबूत कद-काठी का था। जैसे हाथी पर फेंके हुए छोटे-बड़े पत्थरों का उस पर असर नहीं होता, यही हाल चोर का था। बीच-बीच में अन्य लोग भी मारे जा रहे थे पर वह हर बार ‘जय माता दी’ दुहराये जा रहा था। इसी दरम्यान गिरीशजी ने एक और घूँसा दना। इतने कमजोर आदमी से आहत होकर चोर का आत्मसम्मान जाग उठा। उसने भाले की तरह नुकीली आँखों से घूर कर उन्हें देखा। गिरीशजी के हाथ-पाँव फूल गये। चोर की आँखें मानो कह रही थी, ‘मैं इतनी नरम घासनहीं हूँ जिसे हर जानवर खा सके।’

मौके की नज़ाकत देख गिरीशजी ने कूटनीति से काम लेना मुनासिब समझा। चोर को एक तरफ ले गये एवं बोले, ‘ऐसा कर ! तू मेरा पर्स दे दे। पर्स नहीं दे सकता तो मेरा रिजर्वेशन टिकट ही दे दे, मैं तुझे छुड़वा दूंगा।’ उन्होंने गर्दन नापने की पूरी कोशिश की, हर तरह की बूटी सुंघाई, लेकिन पीसे हुए को पीसने के समान उनके प्रयास निरर्थक सिद्ध हुए। वे पानी पर लाठी मारते रह गये, उनके हाथ कुछ न लगा। उनकी निरीह अवस्था देखकर चोर एक बार पसीजा भी पर उसके चतुर दिमाग ने तुरत भाँप लिया कि एक चोरी खुलते ही सब कुछ खुल जाएगा। इतने लंबे समय बाद उसने आवाज खोली, ‘मैं चोरी करने आया था पर मैंने कोई पर्स नहीं चुराया। रुपये लेकर भागने वाला कोई और था।’ 

गिरीशजी चोर को पुनः भीड़ के बीच ले आये। सभी ने हर सम्भव प्रयास किये, हर नीति का प्रयोग किया, चिकनी-चुपड़ी बातें करके समझाने का प्रयास किया पर चोर टस से मस नहीं हुआ। न वह बातों से माना न लातों से। अपने साथी के विश्वास की उसने पूरी लाज रखी। इसी दरम्यान बारात में आये किसी वकील ने राय दी, ‘इसे पुलिस में दे दो, वो सब उगलवा लेंगे। कानून हाथ में लेना ठीक नहीं है।’

पांडाल से अब खाने की सौंधी महक आने लगी थी। दूल्हे-दुल्हन हवन में बैठ गये थे। पुलिस के नाम से  आधे से अधिक लोग वहाँ से सरक लिये। कौन पचड़े में पड़े। सौभाग्य से उसी वक्त पुलिस की एक जीप आकर रुकी। जीप से एक कांस्टेबल उतरा, चोर को खींचकर दो थप्पड़ जमाये एवं जीप में बिठाकर ले गया। तनेजा, गिरीशजी एवं कुछ मनचले भी एफआईआर लिखवाने साथ हो लिये।

रिसेप्शन में आज इसी बात की चर्चा थी। जितने मुँह उतनी बातें। प्रबुद्ध वर्ग चोरी के कारणों का विवेचन कर रहा था तो अन्य कानून व्यवस्था को कोस रहे थे। कोई कह रहा था, ‘इलाके में चार साल से अकाल है, लोग चोरी नहीं करे तो क्या करें? लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा तो क्या करेंगे? यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह युवाशक्ति को विनाशगामी होने से रोके। खेतों में अनाज एवं कार्यालयों में नयी भर्ती नहीं होगी तो युवक कहाँ जायेंगे। पढ़े-लिखे मजदूरी भी तो नहीं करते।’एक अन्य इसका दोष कानून व्यवस्था पर मढ़ रहा था। उसका विवेचन भी सटीक था, ‘बछड़ा खूंटे के बल पर उछलता है। आजकल चोर-थानेदार मिले हुए हैं। जब पुलिस चोरों की हिफ़ाजत कर रही है तो पब्लिक कहाँ जाये। बाड़ खेत को खाने लगे तो खेतों का क्या होगा ?’

तनेजा, गिरीशजी एवं अन्य शुभचिन्तक अब थाने में खड़े थे। थानेदार ने चोर को लाॅकअप में डालकर उसे सुरक्षित कर दिया था। इतनी मारपीट में वह भी अधमरा हो चुका था, यहाँ वहाँ से खून बह रहा था। एक कांस्टेबल उसकी मरहमपट्टी में लग गया।

थानेदार राजेन्द्रसिंह को अब एफआईआर लिखनी थी। लकड़ी की कुर्सी के एक हत्थे पर उसका दायाँ बाजू रखा था एवं दूसरे हाथ से वह टेबल पर सागवान का मोटा डण्डा धीरे-धीरे बजा रहा था। उसकी रुआबदार आँखें एवं भीगी मूंछें जानलेवा थी। कमीज की बाँहें कोहनी से ऊपर तक चढ़ी थी। बाजुओं से झांकती मछलियाँ उसके रुआब में इज़ाफ़ा कर रही थी। कुर्सी के पीछे दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, ‘सत्यमेव जयते’।

थानेदार ने कार्यवाही प्रारंभ की। डण्डा टेबल पर रखकर ड्राॅवर से एक पेपर निकाला, कुछ लिखता उसके पहले तनेजा की ओर घूर कर बोला, ‘चोर को तो आपने पहले ही अधमरा कर दिया। आपको कानून हाथ में नहीं लेना चाहिये। सबसे पहले यह बतायें इसे किस-किस ने पीटा है ?’ उसने तीखी आँखों से सबकी ओर देखा। इतना सुनते ही तनेजा एवं गिरीशजी के अतिरिक्त सभी शुभचिन्तक वहाँ से सरक लिये। अब मात्र दोनों भाई रह गये। तनेजा पुराने चावल थे, इन पैंतरों को खूब समझते थे। उन्हें पता था बिना लिये-दिये थानेदार हिलने वाला नहीं। उन्होंने थानेदार को दस हजार रुपये देने की पेशकश की।  करुण नेत्रों से उसकी ओर देखकर बोले, ‘मेरी रकम दिलवा दो। मुझे कोर्ट कचहरी नहीं जाना।’ थानेदार फिराक में था, आँखें तरेर कर बोला, ‘आप एक सरकारी आदमी को रिश्वत देने का प्रयास कर रहे हैं। इस जुर्म की सजा जानते हैं ? केस दर्ज किया तो दो साल जेल की हवा खाओगे।’ तनेजा ने रकम और बढ़ायी पर कोई असर नहीं हुआ। आज वह अटल था। उन्होंने  हर संभव प्रयास किया पर दाल नहीं गली। गिरीशजी वैसे ही कच्चे थे, उनसे तो बोलते भी नहीं बन रहा था। तनेजा को लगा उन्होंने साँप की बाँबी में हाथ डाल दिया। मेहमानों की भी खबर लेनी थी अन्यथा आधे बिना लिफाफा दिये चलते बनते। 

हताश दोनों भाइयों ने भी यहाँ से किनारा किया। नमाज़ बख़्शाने आये थे, रोजे़ गले पड़ गये। 

उनके जाते ही थानेदार ने चोर की ओर कुटिल मुस्कुराहट के साथ देखा।

चोर अब लाॅकअप के बाहर था। दोनों ने देर रात जमकर शराब पी। नशे में धुत चोर बोला, ‘हुजूर! आज आपकी गाड़ी नहीं आती तो लोग मुझे मार डालते।’

‘मार कैसे डालते! हमारा भी कुछ ईमान है। जब तुमसे पहले ही फिफ्टी-फिफ्टी तय कर लिया तो तुम्हारी हिफाज़त हमारे जिम्मे ही तो होगी।’ थानेदार ने चोर के कन्धे पर हाथ रखकर कहा।

चोर की आंखें चमक उठी।

थाने में अब हँसी के फव्वारे फूट रहे थे।

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18.08.2003

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