चांद को विदा कर सूरज पूर्वी छोर से उठा तो समूचा जगत् क्षणभर में क्रियाशील हो गया। मनुष्य ने सूर्यनमस्कार कर उसका अभिनंदन किया तब भी वह चुप देखता रहा। अन्य सभी तो अपने कार्यों पर लग गए, कुछ बूढ़े उससे उलझ पड़े, “ देव! अभिनंदन का प्रत्युत्तर दीजिए, यूं गूंगा होकर चुप देखने का अर्थ क्या है ?’’ सूरज ने इधर-उधर देखा, किंचित् मुस्कुराया एवं निष्प्रभावित आगे बढ़ गया। क्या सूरज सचमुच गूंगा है अथवा उसके पास भी कोई जुबान है ?
कट्टाजी ने नित्य की तरह बाॅथरूम में आकर बाल्टी में पानी भरा, उसके ऊपर एक मग्गा रक्खा एवं चुपचाप बालकनी में चले आए। उनके दिमाग में तैरते विचारों की तरह मग्गा बाल्टी में हिलने लगा । बालकनी में आकर उन्होंने उगते सूर्य को देखा, बाल्टी नीचे रखकर दोनों हाथ ऊपर किए एवं आलस्य तोड़ते हुए रोजमर्रा के कार्य में लग गए। पौधों एवं उनके मुख पर पड़ने वाली सूर्य किरणों से पौधों एवं उनके चेहरे दोनों का तेज बढ़ने लगा था। घर में उन्हें आवंटित कार्यों में नित्य पौधों को पानी पिलाना भी था। बालकनी के ठीक आगे ऊपर की ओर अन्दर आते हुए एक ग्रिलप्लेट बनी थी जिसमें गमले रखने के सांचे थे, इन्हीं गमलों में पांच पौधे रखे थे जिनमें बांये छोर से पहला गुलाब , उसके आगे कैक्टस, तीसरा मोगरा एवं चौथा-पांचवां क्रमशः गेंदा एवं रातरानी का था। पांचों पौधे सुन्दर मिट्टी के गमलों में लगे थे जिन पर कुछ माह पूर्व ही कट्टाजी ने घर के रंगरोगन के साथ हल्का टेरीकोटा पेंट करवाया था। कट्टाजी इन पौधों में समय-समय पर खाद आदि देते, इनकी ठीक से रखरखाव भी करते। धीरे-धीरे उनका इन पौधों से ऐसा अंतरंग रिश्ता बन गया कि वे इन्हें देखते ही खिल उठते।
मग्गे से गुलाब के पौधे में पानी डालते हुए उन्होंने इधर-उधर देखा एवं मन ही मन बोले, “कैसा है तू ? ’’ गुलाब ने भी उन्हें देखा , अभिवादन में टहनी झुकाई एवं मुस्कुराकर बोला, ’’ अच्छा हूं पापा ! ’’ अरे! तो क्या कट्टाजी के पौधे बोलते भी हैं ? उसकी टहनी सहलाते हुए कट्टाजी ने उसे क्षणभर देखा , फिर बोले, ’’ बधाई गुलाब! यह देख तेरी दूसरी डाली पर एक कली चटकी है।’’ कहते-कहते उनके चेहरे पर एक विचित्र विनोद उभर आया। उन्होंने होले से उस कली को हाथ में लेकर सहलाया।
“आपके पोती हुई है हुजूर! ’’ उत्तर देते हुए गुलाब ठठाकर हंस पड़ा। कट्टाजी झेंपे पर वे कौनसे रुकने वाले थे , ’ज्यादा दांत मत दिखा, अभी थोड़े दिन में झरता नजर आएगा।’ उन्होंने उसी अंदाज में उत्तर दिया। उन्हें लगा जैसे गुलाब ने व्यंग्य किया।
“पापा ! आप भी कमाल करते हो। मैं आपका बेटा हूं तो यह आपकी पोती हुई ना। झर भी गया तो क्या, मुझे पूरा विश्वास है आप इसे पाल लेंगे।’’ कहते हुए गुुलाब जरा आगे की ओर झुका मानो कहना चाह रहा हो पापा बुरा न मानना जो सूझा वही जवाब दे दिया।
कट्टाजी ने कोई उत्तर नहीं दिया एवं कैक्टस के पास आ गए। यह एक राजस्थानी डेजर्ट कैक्टस था जिसे कुछ समय पूर्व उनके एक वन अधिकारी मित्र ने भेंट किया था। ऐसा कैक्टस हल्के हरे रंग का होता है, लंबा बढ़ता है एवं इसके कांटे तीखे होते हैं। कैक्टस से उन्होंने दुकान की कुछ समस्याओं के बारे में बात की , उसकी सलाह ली एवं आगे बढ गए। तत्पश्चात् पानी देते हुए उन्होंने मोगरे, गेंदा एवं रातरानी से भी बात की एवं चुप भीतर चले आए । सुबह-सुबह उनके दिमाग में असंख्य विषय तैरते , पौधों से अलग-अलग मुद्दों पर बात कर कट्टाजी एक विशिष्ट लोक में खो जाते। वे भीतर आए तब तक उनका चेहरा प्रसन्नता से सराबोर था।
क्या कट्टाजी इन पौधों से वार्ता करते हुए किसी रहस्य की थाह पा गये थे ?
भीतर आते ही रेणु ने उन्हें लताड़ा, “ पानी देने का काम पांच मिनट का है एवं पचास मिनट लगाते हो। जाने इन पौधों से क्या बातें करते रहते हो?’’ रेणु से विवाह किये अब उन्हें दो दशक बीत चुके थे।
“एक बार तू भी करके देख, मजा आ जाएगा। आधी समस्या तो इनसे बात करके ही समाप्त हो जाती है। ’’ उन्हें पता था रेणु गुस्से में और कुछ कहेगी, यही सोचकर वे सीधे अपने कमरे में आये एवं टाॅवल लेकर बाॅथरूम में घुस गए।
कट्टाजी जिनका पूरा नाम कमलेश कट्टा है, अब चालीस पार है। साढ़े पांच फुटे होंगे। सर पर खिचड़ी बाल, निर्मल दार्शनिक आंखें एवं उस पर लगा गोल्डन फ्रेम का चश्मा उन्हें जिम्मेदार गृहस्थियों के वर्ग में खड़ा करता है। उनका पारदर्शी चेहरा उनके उजले अंतस की गवाही देता है। अपने परिवार से बेहद प्यार करते हैं। अंतर्मुखी इतने कि मित्र-रिश्तेदारों तक से मन की बात नहीं कहते। हां , काॅलोनी के कुत्ते, गायों, पेड़ों को अक्सर सहलाते हुए दिख जाते हैं। एक बार तो काॅलोनी का एक आदमी बता रहा था कि वे चांद-तारों तक से बातें करते हैं। उसने स्वयं कट्टाजी को मुंह ऊंचा किये ऐसा करते देखा था । उनकी इन्हीं आदतों के मद्देनजर लोग कभी-कभी उन्हें क्रेक , सिरफिरा भी कह देते हैं। दो लड़कियां हैं जिनके कैरियर की चिंता उन्हें अक्सर सताती है। दोनों जुड़वाँ हैं एवं दोनों ने कुछ समय पूर्व स्कूल पूरी कर सीपीटी की परीक्षा दी थी एवं उतीर्ण भी हो गई हैं। सीपीटी का परिणाम सुनकर कट्टाजी खुशी से फूले नहीं समाए थे। कट्टाजी का स्वप्न है कि दोनों बच्चियां सीए करें। कट्टाजी पूरे प्रकृति प्रेमी भी हैं तथा हर साल परिवार के साथ किसी हिलस्टेशन पर जाते हैं। पिछले माह ही वे सपरिवार नैनीताल होकर आए हैं।
कट्टाजी के यहीं मुख्य बाजार से हटकर एक गली में स्वर्णाभूषणों की दुकान है। वे सोने के बने जेवरात बेचते हैं एवं मरम्मत भी करते हैं। धनी नहीं है पर इतनी गुजर हो जाती है कि उनका परिवार खर्च मस्ती से निकल जाय। दुकान खोले बीस वर्ष होने को आए अब तो शहर में अनेक लोग उन्हें नाम से जानते हैं। बात के धनी हैं एवं बाजार में उनकी ईमानदारी की तूती बोलती है। लोग कहते हैं कट्टाजी उतने ही खरे हैं जितना उनका सोना। जहां अन्य दुकानों पर मिलावट आम है, कट्टाजी के माल की गुणवत्ता असंदिग्ध है। वे जो कहते हैं वही देते हैं। कुल मिलाकर अब तक ईश्वर ने लाज रक्खी है लेकिन अच्छे दिन भी सदैव कहां रहते हैं।
आज सुबह दुकान आए तो वहां का दृश्य देखकर उनके पांवों तले जमीन सरक गई। उनका दिमाग चकरा गया, पांव कांपने लगे मानो उन पर आसमान टूट पड़ा हो। बात भी कुछ ऐसी ही थी। बीती रात चोर उनकी दुकान के ताले तोड़कर माल साफ कर गए। दुकान में खाली डिब्बे पड़े थे एवं तिजोरी खुली थी। देखते-देखते वहां भारी भीड़ इकट्ठी हो गई। आनन-फानन पुलिस को सूचित किया गया, पुलिस ने आकर मौका-ए-तफ्तीश की एवं कट्टाजी को साथ लेकर थाने में एफआईआर दर्ज करवाई। कट्टाजी का मुंह लटक गया। वे थाने से सीधे घर चले आए। रेणु, बच्चे समाचार जानकर स्तब्ध रह गए।
रात कट्टाजी रेणु के समीप कटे वृक्ष की तरह पड़े थे। उनके चेहरे का रंग उड़ गया। ओह! अब वे ग्राहकों को क्या जवाब देंगे? रेणु ने उन्हें सांत्वना दी तो वे बच्चे की तरह फफक पड़े, “ रेणु ! अब क्या होगा ? पूरे जीवन की बचत क्षणभर में काफूर हो गई। ओह! अब इन बच्चियों का विवाह कैसे करूंगा ? कैसे इनके अरमान पूरे होंगे ? इतनी बड़ी हानि की भरपाई करते हम बर्बाद हो जाएंगे। ’’ मन का दुःख प्रकट कर वे कुछ हल्के हुए। देर रात तक नींद नहीं आई, चेहरे पर एक रंग आता दूसरा जाता। इस दुरूह दुःख के चलते उनका हृदय कांपने लगा, दिमाग की नसें खिंच गई। वर्षों संघर्ष के बाद आराम के दिन आए थे। अभी तो गुलशन महका ही था और खाक उड़ गई। भोर के पूर्व कुछ उनींदे हुए तो उन्हें राहत मिली।
सुबह उठकर वे नित्य की तरह बाल्टी भरकर पौधों के समीप आए। उनका गुमसुम, मलिन मुख उनकी अंतर्दशा का बयान कर रहा था। इन पौधों के अतिरिक्त अब उनकी सुनने वाला भी कौन था। गुलाब को पानी देते हुए बोले, “ बेटे गुलाब! मैं तो लुट गया।” कहते-कहते उनके कपोलों से अश्रुओं की अजस्र धार फूट पड़ी।
“हां पापा! मुझे पता है। कल ड्राईंगरूम में आप मम्मी से बात कर रहे थे तभी मैं समझ गया आप पर कोई भारी विपत्ति आई है। ’’ कहते हुए गुलाब उदास हो गया। उसके गुलाबी रंग में एक अजीब सा काला रंग घुल गया । यही हाल इस बात को सुनकर अन्य पौधों का था। सभी पौधों का स्वाभाविक रंग ऐसे बदल गया मानो उन पर बिजली गिर गई हो।
“क्या बताऊँ तुझे! ऐसा उलझा हूं कि कोई रास्ता नजर नहीं आता। अब तो फाकों के दिन आ गए। ’’ यह कहते हुए उन्होंने बुदबुदाते होठों से उसे सारा घटनाक्रम बताया।
“पापा! आप आगे से ध्यान रक्खा करें । अब जमाना बहुत खराब है। खैर ! अब मैं भी मोर्चा संभालता हूं। आज मैं हवा मौसी को जवाबदारी देकर कहूंगा तुम तो जगतभर में डोलती हो, तुम्हें तो पता ही होगा चोर कहां है ? तुम चाहो तो उसका पता अवश्य लगा सकती हो। तुम कहां नहीं हो। पापा! आप चिन्ता न करें , मैं सच कहता हूं, हवा मौसी ठान ले तो क्या पता नहीं लगा लेती ? वह तो बंद तिजोरियों तक में घुस जाती है।’’ कहते हुए गुलाब किंचित् आगे झुका तो कट्टाजी ने नित्य की तरह उसे सहलाया, लेकिन रोज के सहलाने एवं आज के सहलाने में फर्क था। आज उनकी अंगुलियां कांप रही थी। उन्हें इस दशा में देख गुलाब रुंआसा हो गया। उसके ऊपर बिखरी ओस की बून्दें उसकी अन्तर्वेदना एवं विलाप की कथा कह रही थी।
कट्टाजी उसे पानी देकर कैक्टस के पास आए। कैक्टस ने उनका एवं गुलाब का वार्तालाप सुन लिया था।
“ओह पापा ! यह तो बहुत बुरा हुआ लेकिन आप हिम्मत न हारिए। जगत् में कौन है जिसके बुरे दिन नहीं आते ? यहां रात है तो दिन भी है। अन्धेरा है तो उजाला भी है। आप धैर्य रखिए। आप को उच्च रक्तचाप की बिमारी है, फ़िक्र करने से बात और बिगड़ जाएगी। आप चिन्ता न करें। धूपरानी मेरी प्रेयसी है। आज मैं उसे सख्त हिदायत दूंगा कि चोरों का पता लगाए। चोर उससे बचकर कहां जाएंगें ? पाप किया है तो उल्टे मुंह गिरेंगें।’’ कहते-कहते कैक्टस गम्भीर हो गया। उदास मन कट्टाजी अब मोगरे के पास आए।
“पापा ! आप दिन-रात इतनी मेहनत करते हैं एवं कमीने चोर हमारा सब कुछ ले उड़े। चोरों ने अभी मेरा गुस्सा कहां देखा है ? आज मैं तितली को कहकर शहरभर में फैले मेरे मोगरा भाईयों को सूचित करूंगा कि वे निगाहें तेज कर ध्यान रक्खें कि चोर किधर से भाग रहे हैं ? आप निश्चिंत रहें। कुछ तो पता चलेगा ही। किसी ने तो उन बदमाशों को देखा होगा। पुलिस उन्हें जरूर पकड़ लेगी। हड्डी पसली ढीली होगी तब अकल आएगी कि पापा का माल चुराने का हश्र क्या होता है।’’ मोगरे का सफेद रंग गुस्से के मारे हल्का लाल हो गया।
कट्टाजी अब गेंदे के आगे खडे़ थे। आज उसका भी मुंह लटका हुआ था। लगभग रोते हुए वह भी फूट पड़ा, “पापा मैं अभी चिड़िया को कहता हूँ वह अन्य पक्षियों को साथ लेकर चोरों का पता लगाए।’’ कहते हुए गेंदा भावुक हो गया।
कट्टाजी अब रातरानी के आगे खड़े थे। उसकी दशा देखते बनती थी। वह सुबक रही थी। जस-तस संयत होकर बोली, “ मधुमक्खी हमसे रस लेकर शहरभर में मंडराती है। आज मैं उसे स्पष्ट कह दूंगी आगे से रस चाहिए तो जाओ चोरों को ढूंढो और उनकी ऐसी फजीती करो कि नानी याद आ जाए।’’ कहते हुए रातरानी का भी गला भर आया।
कट्टाजी इस वार्तालाप के पश्चात् फूल से हलके हो गये। उन्हें लगा किस तरह दुःख बांटने से आधा हो जाता है।
क्या खामोशियों की जुबां इतनी शक्तिशाली होती है ?
सच्चे लोगों का आर्तनाद कायनात तक को हिला देता है। एक आश्चर्य घटित हुआ। मात्र एक दिन बाद दोपहर पश्चात् चोर जब अवसर पाकर शहर से बाहर निकल रहे थे, उनकी कार का एक हथठेले से एक्सीडेंट हुआ। कहते हैं कार चलाते हुए ड्राइवर को एक मधुमक्खी ने काट खाया था एवं यकायक ध्यान भंग होने से यह दुर्घटना हो गई। आनन-फानन पुलिस आई तो यह जानकर दंग रह गई कि कार के भीतर बैठे वही चोर हैं जिन्होंने कट्टाजी के यहां चोरी की। पुलिस ने चोरों को गिरफ्तार कर सभी आभूषण कब्जे में लिए। कट्टाजी ने थाने पहुंचकर उनके माल की पुष्टि की।
कट्टाजी थाने से निकले तब तक सांझ हो चुकी थी।
शहर के उस पार डूबता हुआ सूरज सवेरे प्रश्न करने वाले बुजुर्गो को प्रत्युत्तर दे रहा था, “बात करने के लिये जरूरी नहीं है मुंह से बोलो। प्रकृति की खामोशियां उससे कई अधिक वाचाल होती हैं। क़ुदरत चुप होकर भी बोलती है।’’
यह भी सुनने में आया कि जिस ठेले से कार का एक्सीडेंट हुआ उसमें कुछ पौधे रक्खे थे। कुछ लोग यह भी कहते हैं कट्टाजी ने स्वयं ठेले वाले के घर जाकर नुकसान की भरपाई की थी।
दिनांक: 17 अक्टूबर, 2018
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