उसका नाम

कोई तो है जो मेरा लगातार पीछा कर रहा है। 

अब जब कि मैं साठ पार हो गया हूं एवं मुझे लगातार आश्वस्ति हो रही है कि कोई मेरे पीछे लगा है तो यह बात गलत नहीं हो सकती। अब तक घर वालों ने एक लंबे अनुभव के पश्चात मुझे मनोरोगी मान लिया है, मनोचिकित्सक को भी बताया है पर उसने भी यही कहा इन्हें कुछ नहीं हुआ है। घरवालों की बात रखने के लिए उसने एक-दो सेडेटिव्ज लिखी हैं, मैंने भी मन मारकर यह गोलियां ले ली हैं पर इसके बावजूद मेरी धारणा जस की तस है कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। आप घोड़े को पानी की खेली तक ले जा सकते हैं मगर पीएगा तो अपनी मरजी से ही। उल्टे नींद की गोलियां लेने के पश्चात मैं कुंभकरण की नींद सोया एवं ताजा होकर पुनः उसी सोच को दृढ़ किया कि कोई तो है जो मेरा पीछा कर रहा है।

मेरा यह चिंतन अथवा इसे रोग कह दें आज का नहीं है, वर्षों पुराना है। मैं ऐसा जवानी से नहीं, उसके भी पहले बचपन से या यूं कहूं जबसे होश संभाला इस तरह सोचता आया हूं। एक लंबे समय तक तो मैंने घरवालों यहां तक कि पत्नी को भी हवा नहीं लगने दी कि मैं ऐसा सोचता हूं। एक-दो बार नूपुर ने कहा भी आपके साथ कुछ लफड़ा है तो मैंने उसकी ओर तीखी आंखों से देखा, वह सहम कर चुप हो गई। ज्यादा बकबक करती तो साफ़ कहता मैं क्या चीखता हूं , चिल्लाता हूं , कमाता नहीं हूं , घर की जिम्मेदारियां नहीं ओढ़ता जो ऐसा सोचती हो। अरे! हर व्यक्ति के दिमाग में कोई न कोई लफड़ा होता है, दुनिया में एक आदमी तो बताओ जिसके सोच में लफड़ा नहीं है। ऐसा नहीं होता तो आदमी यूं बदहवास मोह-माया के पीछे भागता क्या? यह चिंतन का लफड़ा नहीं तो और क्या है ? कोई धन, कोई पद, कोई सत्ता तो कोई यश के पीछे बावलों की तरह भाग रहा है। इतना ही नहीं अपने इस जुनून , पागलपन में असंख्य लोगों को अपने जैसा बना लेता है। समाज के असल पागल तो ये लोग हैं। इनकी तुलना में मेरा यह रोग कितना कम है, लगभग नगण्य कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। 

ऐसा नहीं है कि मैं यूं ही दिमाग में खलल की वजह से ऐसा सोचता हूं। मेरे पास ऐसा सोचने के स्पष्ट कारण एवं उदाहरण भी हैं जिसने मेरी इस धारणा को बलवती किया है कि कोई मेरा पीछा कर रहा है।

एक बार मैंने यह बात मेरे अंतरंग मित्र अहलूवालिया से भी कही। उसे नूपुर के हाथ के पकौड़े बहुत पसंद हैं। वह मेरा लंगोटिया है, बचपन से घर आता-जाता है। आश्चर्य ! अहलूवालिया ने भी वही कहा जो नुपूर सोचती है। यार ! तेरे पीछे कोई भूत-प्रेत-पिशाच तो नहीं पड़ गया ? उस दिन मैंने अहलूवालिया को यह कहकर लताड़ा, मेरे पीछे तो बचपन से तू पड़ा है, तू किसी प्रेत-पिशाच से कम है क्या ? उसने यही बात चटकारे लेकर नूपुर को बताई। उसे कुछ हजम होता है क्या ? उस दिन मैंने नूपुर एवं अहलूवालिया दोनों को ‘नाॅनसेंस’ कहकर लाल-पीली आंखों से देखा तो दोनों को सांप सूंघ गया। नूपुर ने तब अपने मुहावरे ज्ञान की पिटारी से निकालकर वही घिसा-पिटा मुहावरा बुदबुदाया जो वो पहले भी दस बार कह चुकी थी, नकटे का नाक काटो सवा गज बढ़े। 

 मेरे पास घटनाओं का लंबा क्रम है जो इस बात को सिद्ध करता है कि कोई मेरे पीछे है। ऐसा भी नहीं कि कोई मेरा पीछा कभी-कभार कर रहा हो, मेरी स्पष्ट अनुभूति है कि कोई लगातार, सर्वत्र मेरे पीछे चल रहा है। मेरे साथ घटी घटनाएं इस धारणा को दृढ़ करती हैं कि मैं किंचित् गलत नहीं सोच रहा। यह घटनाएं अच्छी-बुरी दोनों हैं एवं इनसे गुजर कर कोई भी ऐसा सोचेगा कि उसके पीछे कोई है। हां, अकल के अंधों को यह बात न समझ आए तो इसमें मेरा दोष है क्या ? सूर्य का प्रकाश उल्लू तक न पहुंचे तो क्या इसमें सूर्य का दोष है ? 

मैं व्यापारी हूं एवं मानता हूं मैंने व्यापार में अच्छा पैसा कमाया है। शहर के प्रथम सौ धनपतियों में मेरा नाम है। अनेक कार्यक्रमों में मुख्य-अतिथि बनकर जाता हूं , वहां लोग मेरे साधारण से उद्बोधन को असाधारण कहकर मुझे चंदे के लिये रिझाते हैं। वहां मुझे नूपुर एवं अहलूवालिया की तरह कोई पागल नहीं कहता, लोग यही कहते हैं , वेल डन पेड़ीवाल साहब! आप जीनियस हैं। ऐसा उद्बोधन तो हमने पहले कभी नहीं सुना।  यहां तक कि मुझे गाड़ी तक छोड़ने आते हैं। इतना ही नहीं पूरे रास्ते चापलूसी भरे मीठे वचन बोलते हैं। अब राज की बात बताऊं ? मैं गधा हूं और सच कहूं तो गधा मुझसे अधिक बुद्धिमान , संयत एवं समझदार है। बात-बात पर उखड़ता तो नहीं, जो लादो ढो लेता है। मेरे धनी होने का कारण मेरा व्यावसायिक कौशल नहीं, वही बात है जिसे नूपुर एवं अहलूवालिया प्रेत, पिशाच, भूत आदि कहते हैं एवं मैं ऐसा सोचता हूं कि कोई मेरे पीछे है।

मैं स्टाॅक ट्रेडिंग यानि शेयर्स क्रय-विक्रय का कारोबार करता हूं एवं बहुधा ऐसे व्यवसाय में जहां लोग पैसा कमाने के लिए आकाश-पाताल एक कर देते हैं , काम करने के पहले हजार देवताओं को मनाते हैं , बैलेंसशीट, तुलनपत्र एवं जाने क्या-क्या व्यावसायिक अनुपात देखते हैं, मैं अंधे की तरह रामजी का नाम लेकर कूद जाता हूं एवं आश्चर्य ! इन सब विश्लेषण करने वाले महारथियों को दरकिनार कर लाभ भी कमा लेता हूं एवं अचरज यह भी कि ये महारथी बहुधा घाटे में रहते हैं। मुझ बुद्धू के सटीक निर्णय से अनेक बार यह गहरे विषाद में चले जाते हैं। मेरे व्यावसायिक निर्णयों के आगे इनके निर्णय रेत के महल की तरह धराशयी हो जाते हैं।

मेरा मूल वतन जोधपुर है। एक बार मैं कार से अन्य साथी व्यवसायियों के साथ जयपुर जा रहा था। उस दिन ड्राइवर कार ठीक से नहीं चला रहा था, वह कुछ असंयत था। आधे रास्ते वही हुआ जिसका अंदेशा था, कार किसी पेड़ से टकराई एवं ड्राइवर सहित सबको चोटें आई पर मैं साफ बच निकला। मुझे खरौंच तक नहीं आई। सबने कहा पेड़ीवाल किस्मत वाला है, पर मुझे पता था मुझे उसने बचाया जो मेरा पीछा कर रहा है। 

एक बार मुझे बैंक लाॅकर से नूपुर के गहने निकालने थे , बैंक नजदीक ही था, मैं चाबी लेकर पैदल ही पहुंच गया। लौटते हुए बचपन का एक मित्र मिल गया। हम दोनों वहीं पास खड़े चाय के ठेले से चाय लेकर गुफ़्तगू में मशगूल हो गए। उसके बाद मैंने एक-दो काम और निपटाए एवं घर चला आया। कुछ समय पश्चात नूपुर ने पूछा गहने कहां रखे तो मैं चौंका। मेरे नीचे से जमीन सरक गई। अरे, मैं गहनों का बाॅक्स कहां रख आया? नुपूर आंखें तरेर कर ऐसे देखने लगी मानो फाड़ खाएगी। मैंने मेरी मेमोरी रिवाइंड की, कुछ याद नहीं आया। मुझे लगा एक बार पुनः बैंक जाकर तसल्ली करलें कि बाॅक्स वहां तो नहीं छूट गया। नूपुर कुड़कुड़ करने लगी, मैं बदहवास बाहर आया, आश्चर्य ! चाय के ठेले वाला बाॅक्स हाथ में लिए बाहर गेट पर खड़ा था। मैं उसकी ईमानदारी से दंग रह गया। उसने जब बताया कि चार-पांच लोगों से पूछ कर मेरे घर का पता हासिल किया है तो उसका कद मेरी नज़़रों मे और बढ़ गया। ओह ! यह कैसा देश है जहां एक तरफ जिनके पास सबकुछ है वे अघाते नहीं एवं जिनके पास कुछ नहीं है वे ईमान के ऐसे असाधारण ज़ज़्बे से लबालब हैं। मैंने उसे ईनाम देने की पेशकश की तो उसने यह कहकर इंकार कर दिया कि यह तो उसका फर्ज़ था। कृतज्ञ मेरी आंखें लबालब हो गई।

इस घटना के बाद नूपुर कई दिन उखड़ी रही। अहलूवालिया से मंत्रणा कर मुझे झाड़-फूंक वाले को भी बताया गया। अन्य कोई अवसर होता तो मैं इन दोनों को आड़े हाथों लेता पर इस बार गलती मेरी थी अतः मेरे पास आंख नीचा कर दोनों की बात मानने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था हालांकि मैं जानता था यह करामात अन्य किसी की नहीं, मात्र उसी की है जोे मेरे पीछे लगा है। झाड़ेवाला जब मुझे मोरपंखियों से मार रहा था, अहलूवालिया मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। मैंने कहा मुस्कुरा ले बेटे! मुसीबत में पैसे लेने मेरे पास ही आएगा। उस समय ठेंगा दिखाऊंगा तब नानी याद आएगी। तू भी किसी दिन तेरी चिर-कड़की के प्रेत का झाड़ा लगाने यहीं आयेगा। लाऊंगा भी मैं ही। मैं तेरी तरह होठ दबाकर मुस्कुराऊंगा नहीं, पेट पकड़कर खिलखिलाऊंगा।   

ऐसी एक नहीं अनेक बातें मेरे जीवन में हैं जो पुष्ट करती हैं कि कोई तो है जो मेरा पीछा कर रहा है एवं वह भी इस हद तक जैसे वह मेरी तकदीर का नियंता या यूं कहूं भाग्य-विधाता हो। इतने सुख मनुष्य की झोली में यूं ही नहीं आते। 

बच्चे हालांकि दूरस्थ पोस्टेड हैं पर सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर हैं, मुझे भरपूर आदर भी देते हैं। मैं उनसे बहुत खुश हूं। बहुएं मेरी लक्ष्मी जैसी हैं । सच यह भी है कि मैंने उनमें से किसी के कैरियर निर्माण में कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा नहीं की है। आज के युग में जहां मैं अक्सर भाई-बहनों में कलह देखता हूं, हम भाई-बहन एक दूसरे पर जान देते हैं। मेरी उम्र में जहां लोग देशाटन पर जाने तक से कतराते हैं, मैंने अनेक बार विदेश यात्राएं भी की हैं। 

ऐसा भी नहीं है कि मेरी जिंदगी में अच्छा ही अच्छा हुआ है। जीवन धूप-छांव है, सुख-दुःख की आंख मिचौली है। यहां मस्तियों के फूल हैं तो उलझनों के कांटे भी हैं। शेयर बाजार में पैसा कमाने के पूर्व मैंने भी खूब गुलाचियां खाई हैं। एक बार तो दिवालिया होते बचा हूं। ऐसी एक नहीं अनेक मुसीबतों , मोड़ों से गुजरा हूं लेकिन मैंने कभी शिकस्त नहीं मानी। मानता भी कैसे ? मुझे पता है मेरे पीछे कोई लगा है जो घड़ी – घड़ी मुझे हिम्मत दे रहा है। उसे जानने के लिये मैंने क्या नहीं किया ? दुनियाभर के ग्रंथ पढे़, मंदिरों में मत्था टेका, संत – महंतों के चरण दबाए लेकिन उसे पकड़ नहीं पाया। कोई अपनी छाया पकडे़ तो उसे पकड़े। 

अब मेरी समस्या और गहन हो गई है। ‘जिन खोजा तिन पाइयां’ की तरह मेरी यह अनुभूति पहले से  विकराल बन गई है। मेरा यह पुराना रोग पहले से दस गुना बढ गया है। अब मुझे लगने लगा है कि जो मेरे पीछे लगा है, वह मात्र मेरे पीछे ही नहीं लगा है, हम सबके पीछे यहां तक कि सूरज , चांद, सितारों तक का पीछा कर रहा है। वह किसी को नहीं बख्शता। उसकी सत्ता को मनुष्य तो क्या देव भी उल्लंघन नहीं कर पाते।  वह आपके सोने के साथ सोता है, उठने के साथ उठता है, चलने के साथ चलता है यहां तक कि आठ पहर चौबीस घड़ी आपके साथ होता है। वह वहां भी होता है जहां सब होते हैं। वह वहां भी होता है जहां कोई नहीं होता। साधारण लोगों की तो छोड़िए, शातिर से शातिर उसके पंजे से नहीं निकल पाते।

उसे कौन निर्धारित करता है ? कोई कहता है आपके पाप-पुण्य उसे निर्धारित करते हैं तो कोई कहता है आपका व्यवहार, कोई मीठी बोली तो कोई अन्य कहता है वह आपके चिन्तन तक पर सवार है। आप क्या सोचते हैं, वह यह तक जान लेता है। आखिर वह है कौन जो हम सबके पीछे पड़ा है ? जो राजा-रंक किसी को नहीं छोड़ता। सभी जैसे उसके हाथों में खिलौने हैं । संसार की हर शै मानो उसी की गुलाम है। 

अब उल्टा हो गया है। इन दिनों मैं लठ लेकर उसके पीछे पड गया हूं। मैंने प्रण किया है मैं उसे ढूंढकर रहूंगा।  अगर हम उसे भी न पकड़ पाये जो जीवनभर हमें पकड़े रहा तो क्या खाक छानी ? 

मैंने अब मेरा व्यवसाय, मोह-माया सब छोड़ दी है, बस हर घड़ी इस धुन में रहता हूं कि उसे जान लूं पर वह भी कम नहीं है। कभी लगता है यह पकड़ आया, यह आया और वह हाथ से छूटे चोर की तरह फुर्र हो जाता है। देखता हूं वह कब तक बचता है ?

अब उम्र चुक चुकी है। मैं मृत्यु-शैय्या पर पड़ा हूं। मेरे हाथ-पांव निढाल हो चुके हैं। जिह्वा को सन्निपात हो गया है। 

अब वह मेरा पीछा छोड़कर मेरे सम्मुख हो आया है, इस जीवन का ही नहीं, जन्म-जन्मांतर का कच्चा चिट्ठा लेकर, मुझे ललकारते हुए कि हां, मेरे पास तुम्हारे तिल-तिल का लेखा है। मेरे हिसाब में कोई त्रुटि नहीं होती एवं यह भी स्पष्ट सुन लो मनुष्य जीवित ही तब तक है जब तक मैं उसका पाई-पाई हिसाब न ले लूं। मेरा कार्य पूर्ण होते ही आत्मा शरीर छोड़ देती है।

मुझे उत्तर मिल गया है। 

निश्चिंत, अब मैंने आंखें मूंद ली है। 

वह भी जाते-जाते मेरे कान में अपना नाम बता गया है। 

मित्रों ! वह कहता था उसका नाम ‘ कर्म ’ है। 

दिनांक: 13/08/2019

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